छत्तीसगढ़ के आदिवासी बच्चों की पहल, होस्टल में बनाया किचन गार्डन, रोज एक घंटे मेहनत कर अपने लिए उगा रहे सब्जियां

कांकेर जिले के चारामा ब्लॉक स्थित पण्डरीपानी गांव में स्थित प्री-मैट्रिक आदिवासी बालक छात्रावास में विद्यार्थियों ने मिलकर पोषण वाटिका बनाई है। छात्रावास की इमारत के पीछे के खाली जगह को इन्होंने तैयार कर इसमें पोषण से भरे विभिन्न साग-सब्जियों के पौधों लगाए गए। रोजाना एक घंटे की मेहनत कर विद्यार्थी यहां पौधों की देखभाल करते हैं।
छात्रावास के अधीक्षक भीखम सिंह धु्रवे ने बताया कि छुट्टी के दिन छात्रावासी बच्चों द्वारा पोषण वाटिका में एक घंटा श्रमदान किया जाता है। इसके अलावा छात्रावास के कर्मचारियों द्वारा भी अपना योगदान दिया जाता है।


जैविक विधि से उत्पादन
पौधों में सिर्फ  जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है। यहां से उत्पादित सब्जियों को छात्रावास के रसोई में प्रयोग किया जाता है। भीखम सिंह धुर्वे बताते हैं कि वाटिका को तैयार करने में कृषि विज्ञान केन्द्र कांकेर का सहयोग लिया गया था। यह वाटिका दो वर्ष में पूरी तरह तैयार हो गई है। 
वाटिका में एक दर्जन सब्जियां, 20 तरह के फल
वाटिका में इस वक्त लौकी, बैंगन, सेम, टमाटर, अदरक, हल्दी, कुंदरू, धनिया, मेथी, पालक, मिर्च, और अरबी-कोचई लगाई गई है, जिसे छात्रावासी बच्चों द्वारा उपयोग किया जा रहा है। बाजार के रासायनिक उर्वरकों से उत्पादित सब्जियों के बजाय वे स्वयं के द्वारा जैविक खाद से उत्पादित सब्जियों का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे उनके सेहत में सुधार आया है, साथ ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति भावनात्मक जुड़ाव भी हुआ है। इस वाटिका में फलदार पौधे कटहल, मुनगा, केला, पपीता, अमरूद, जामुन, काजू, बादाम, लीची, मौसंबी, चीकू, अनार, बेल, नारियल, आंवला, शहतूत, आम, नींबू, इमली और सीताफल इत्यादि के पौधे भी लगाए गए हैं। जिले के कलेक्टर केएल चौहान ने पोषण वाटिका के इस स्वरूप को सभी आश्रम-छात्रावासों में भी लागू करने के निर्देश दिए हैं।

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