राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों के किसान सिंचाई के लिए रात में मिलने वाली बिजली से परेशान हैं। कंपकपाती सर्दी में आधी रात को सिंचाई करने खेत जाना इनके लिए जानलेवा साबित हो रहा है।
मध्यप्रदेश के झाबुआ के पेटलावाद ब्लॉक स्थित गोपालपुर पंचायत में शाम के वक्त बच्चे-बुजुर्ग सभी अपने घरों में लौट रहे हैं। इसकी वजह है यहां की कड़कड़ाती ठंड। रात में गांव का तापमान 5 डिग्री सेल्सियस के नीचे पहुंच जाता है। हालांकि, जब सब लोग घर जा रहे हैं तभी गांव के कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें ऐन शाम के वक्त खेत की तरफ निकलना पड़ता है। गांव के दो किसान दुलेसिंह खापेड़ और गोपाल सिंह खापेड़ अपनी टॉर्च, एक माचिस और कुछ सीखी लकड़ियों के साथ खेत की तरफ निकल चुके हैं। पूछने पर बताते हैं कि शाम में 8 बजे के बाद कभी भी बिजली आ सकती है और इस वक्त फसल की सिंचाई करना बहुत जरूरी है। गांव के बाकी किसान भी ठंड से बचने की व्यवस्था कर खेतों की तरफ निकल रहे हैं। ठंड से बचने के लिए ये खेत की मेड़ पर अलाव जलाते हैं और बिजली आने का इंतजार करते हैं।

मध्यप्रदेश के दूसरे इलाकों के किसान भी बिजली के शेड्यूल की वजह से रात में ही पंप चलाकर सिंचाई करते हैं। देवास के सतवास गांव के किसान राजेश राठौर बताते हैं कि उनके यहां कागजो में तो ठंड 4 डिग्री के करीब बताते हैं लेकिन खुले खेत में पानी लगाते समय लगता है कि पारा माइनस में चला गया हो। हाथ पांव एकदम सुन्न हो जाते हैं, लेकिन पर्याप्त वोल्टेज के साथ बिजली रात में ही आती है तो सिंचाई करना मजबूरी है। इंदिरापुरी गांव के किसान मोजीराम नायक ने बताया कि सिंचाई के समय उन्हें फसलों के ऊपर बर्फ की सफेद परत दिखती है, जिससे ठंड का अंदाजा लगाया जा सकता है।
हरदा जिले के कई बड़े किसानों ने सिंचाई का काम मजदूरों के ऊपर छोड़ा हुआ है। वहां के गावों में मजदूर खेतों में झोपड़ी बनाकर सिंचाई करने का काम करते हैं।

दरअसल, ठंड बढ़ने के साथ फसल की सिंचाई जरूरी हो जाती है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. गोपी कृष्णा दास बताते हैं कि इस वक्त खेतों में सिंचाई करने से जमीन के भीतर की गर्मी उपर आ जाती है और फसल को पाला से बचने में सहायता मिलती है। अगर ऐसे वक्त में सिंचाई नहीं हुआ तो रातोंरात फसल खराब होने का खतरा रहता है।
अब ट्विटर पर चल रही मुहीम
किसान स्थानीय स्तर पर दिन में बिजली देने की मांग उठा रहे हैं। इंदौर, हरदा, देवास सहित कई जिलों में जनसुनवाई के दौरान इस तरह की मांग की गई, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। यह परेशानी सिर्फ मध्यप्रदेश की नहीं, बल्कि राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों के किसानों की है। परेशानी से तंग आकर किसानों ने एकसाथ ट्विटर पर हैशटैग ‘किसान को दिन में बिजली दो’ के साथ महीम छेड़ रखी है। पिछले 10 दिन से रोज 1000 से अधिक ट्वीट के साथ किसान इस अभियान को चला रहे हैं।

भारतीय किसान संघ से जुड़े युवा किसान शुभम पटेल भी ट्विटर के इस अभियान से जुड़े हैं। ग्राउंड टेल्स के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि ट्वीट कर किसान अपना हक मांग रहे हैं। जिस तरह इंडस्ट्री को दिन में बिजली की सुविधा मिलती है उसी तरह किसानों को भी मिलनी चाहिए। इस मुहीम में सिंचाई के समय राजस्थान के बारा के दो किसानों की मृत्यु का मामला भी उठाया जा रहा है और रात में सिंचाई को किसानों के लिए जानलेवा बताया जा रहा है।
क्या है सरकारों का रुख
मध्यप्रदेश में इस वर्ष अक्टूबर से पहले दिन में 10 घंटे बिजली दी जाती थी, लेकिन किसानों ने मांग की थी कि भूजलस्तर कम होने की वजह से दिन में एक साथ बिजली देने से उनके बोरवेल सूख जाते हैं। मांग को मानते हुए रात में 6 घंटे बिजली की व्यवस्था की गई जो कि ठंड आने के बावजूद जारी है। मानसून के बाद भूजलस्तर सुधरा है लेकिन फिर भी बिजली का शेड्यूल नहीं बदला। उर्जा विभाग के अधिकारी ऐसा करने में आधारभूत ढ़ांचा की कमी और तकनीकी खामियों की वजह से असक्षम है। मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों की मांग पर अब तक कोई विचार नहीं किया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस साल की शुरुआत में ही किसानो को दिन में बिजली देने की व्यवस्था करने को कहा था, लेकिन अबतक बिजली विभाग की तरफ से ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।